दो भैंसे बेमन से चारा खा रही थी. पिछले दिनों माँ बनी भैंस से नहीं रहा गया,” माँ कहा करती थी, एक बार दूध देने लगेगी फिर देखना, क्या खातिर-तवज्जो होगी. गुड़, बिनौले, और रोज़ मल मल के नहलाना….. खाक! यहाँ तो बस कुछ भी अग्द्म-सग्दम खाओ और बस दूध दिए जाओ. मैं तो दूध देना बंद करने वाली हूँ. बहुत हो गया.”
बुजुर्ग भैंस ने कहा, ” चुप कर बे निगोडी. तू इस काले सिर वाले को जानती नहीं है. उस बकरे को देख, मौत की राह देख रहा है. और यह मुर्गा जो रोज़ सुबह बांग देता है, अपनी मौत को बुलाता है. इस काले सिर वाले की भूख कभी नहीं मिटती. ज़िंदा रहने के लिए इसको रोज़ कुछ भेंट चढ़ानी पड़ती है. जिस दिन दूध देना बंद करेगी, तुझे सीधा कसाइखाने भेज देगा.”
इतने में दयाराम बाल्टी लेकर आता दिखा. दोनों चुप होकर चारा खाने लग गयी.
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