शब्द गये भाड़ में,
चेहरा पढ़ो.
देखो इस पाँच सितारा होटल की
स्वर्गिक संडास में खड़े वेटर को
जो टिश्यू पेपर थमाते हुए
कह रहा है, ‘ लीजिए सर.’
मगर देखो उसके चेहरे पर फैली
कपट भरी विनम्रता जो कह रही है-
‘कुछ दीजिए सर.’
देखो अपने राजनेता को चिल्लाते हुए
( हाथ उठा कर कांख छिपाकर- धूमिल )
जो कह रहा है, ‘ बदल डालो!’
मगर उसकी फड़कती आँख कह रही है-
‘कुचल डालो.’
शब्द गये भाड़ में
चेहरा पढ़ो.
चेहरा पढ़ो उस छोकरे
का जो लड़की को सीट देकर
उसे घूरने की धृष्टता का अधिकार कमा चुका है.
और हो सके तो चेहरा पढ़ो इस माँ का
जिसकी इबारत समझ में नहीं आती है.
लिख दिया है समय ने इतना कुछ
कि लिकोले बन गये है.
शब्द गये भाड़ मे.
चेहरा पढ़ो.
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